बाली वध

बालीवध-क्या राम  ने बाली को पेड़ के पीछे से छिपकर मारा ? :-----

बालीवध राम ने पेड़ के पीछे से छिपकर किया या सामने से किया , ये एक विवाद का विषय है जिसमें  अधिकांश लोग यही मानते हैं कि राम ने बाली वध पेड़ के पीछे से छुपकर किया ।

पर नहीं ये बिल्कुल सच नहीं है, क्योंकि ऐसी किसी भी बात का ज़िक्र तक न तो रामायण में मिलता है और न ही राम चरितमानस में ,

हां बाली वध के कुछ समय पहले तक राम ,  लक्ष्मण और अपने साथियों के साथ पेड़ के पीछे खड़े होकर सुग्रीव और बाली का युद्ध  अवश्य देख रहे थे।

पर जब राम ने बाली को मारा उस वक्त राम कहां और कैसे खड़े थे इसबार को न तो रामायण में बताया गया है और न ही रामचरित मानस में , अर्थात इससे पता चलता है कि वाल्मीक ने इस बात पर ज़ोर इसलिए नहीं दिया क्योंकि राम ने बाली को वैसे ही मारा जैसे कि एक वीर बाली को मारता इसमें कहने सुनने को कुछ  है ही नहीं , क्योंकि बाली स्वयं ने राम से पेड़ के पीछे से छुपकर मारने की बात कभी नहीं कही ,  इसीलिए मैने बालीवध को वाल्मीकीय रामायण  के श्लोक और रामचरित मानस की  चौपाई और दोहों का उदाहरण देकर समझाया है 

तो बाली ने  गुस्से में राम पर हज़ार इल्ज़ाम लगाए पर पेड़ के पीछे से छुपकर मारने की बात एक भी बार  नहीं कही । 

तो  वाल्मीकीय रामायण के किष्किन्धा काण्ड के सत्रहवें  (17) सर्ग की  श्लोक संख्या 16- 24 तक में बाली के द्वारा कहे गये हर वाक्य का अर्थ और नीयत दोनों बताई गईं हैं । ( यहां मैने वाल्मीकीय रामायण के श्लोकों के अर्थ लिखे हैं पर श्लोक नहीं क्योंकि लोग तो अर्थ ही पढ़ते हैं न ) 

यहां ये कहना चाहती हूं कि इस ग्रंथ     ( वाल्मीकीय रामायण)की प्रामाणिकता केवल इसी बात  से है कि 

1, ये वाल्मीकीय रामायण श्रीराम के काल में ही लिखी गई ।

2, ऋषि वाल्मीक बीच में रामचंद्र जी से मिले भी थे ( तो राम ने  उन्हें सत्य घटना ही बताई होंगी  ) 

3, देवी सीता स्वयं ऋषि वाल्मीक के आश्रम में रहीं थीं तो घटना क्रम सीता ने भी  राम से सुनकर और कुछ प्रत्यक्ष देखकर ही ऋषि को बताये होंगे , क्योंकि जब सीता वाल्मीकी आश्रम में गई थीं तब वाल्मीक रामायण लिख रहे थे । ठीक  है  ।

तो अब मैं आपके समक्ष वाल्मीकीय रामायण में बाली वध के उन सभी श्लोकों के अनुवाद रख रही हूं जो किष्किंधा काण्ड के सत्रहवें सर्ग में बाली वध से संबंधित  हैं इसीसे  प्रमाणित हो जायेगा कि वास्तव में राम ने बाली को क्या पेड़ की आड़ से छुपकर सच में मारा था? या ये सिर्फ कही सुनी बातें है ।

देखिए किसी भी घटना की प्रामाणिकता इस बात पर निर्भर होती है कि या तो उस घटना का कोई ज़िंदा सबूत हो  ( यानि कि गवाह जो इस प्रकरणमें बाली स्वयं है ),  या कि कुछ साक्ष्य मिलें , सौभाग्य से बालीवध में बाली स्वयं ज़िंदा साक्ष्य ,सबूत और गवाह तीनों था इसलिए वो जो बोलेगा वही मान्य होगा क्योंकि वही तो भुक्तभोगी है इस घटना का,  उसी पर   तो गुज़री है यानि बालीवध की घटना का भुक्तभोगी मात्र वही है या फिर वे लोग जो राम के साथ वहां उपस्थित थे जैसे सुग्रीव हनुमान जी , नील , तार आदि तो ऐसी स्थिति में बाली का बोलना ही प्रामाणिक होगा क्योंकि जिसपर बीतती है वो तो सत्य ही बोलता है क्योंकि वो उस समय राम के समक्ष  कातर और क्रोधित दोनों था अब देखना ये है कि क्या बाली एक बार भी ये बोलता कि - राम तुमने मुझे पेड़ के पीछे से छुपकर मारा , और यदि एक बार भी बाली के मुंह से ऐसा वाक्य निकला तो फिर मैं भी मान जाऊंगी कि हां राम ने बाली को सचमुच पेड़ के पीछे से छुपकर मारा है , पर शर्त ये है कि इन वाक्यों  में शब्द पेड़ या वृक्ष में से कोई एक शब्द ज़रूर आना चाहिए। 

पर विडम्बना तो देखिये कि इस पूरे प्रकरण में  छुपकर मारा , छल से मारा , सामने आकर युद्ध करते तो तुम्हें  (राम) यमराज के पास पहुंचा देता  जैसे शब्दों का प्रयोग  बाली ने किया है , पर पेड़ के पीछे से छुपकर मारने की बात उसने एकबार भी नहीं बोली तो फिर बाली राम से छुपकर मारने की बात  किस कारण कर रहा है ? ये मैने आगे बताया है ।य

इन अनुवादों को आप ज़रा ध्यान से पढ़ें 

बाली वध के सिलसिलेवार रामायण के श्लोकों केअनुवाद :-------

जब बाली को राम का बाण लगा और वो धराशाई हुआ तत्पश्चात उसने जो पहली बात बोली वो थी ( वावाल्मीकीयरामायण. किष्किंधा काण्ड सर्ग सप्तदशः श्लोक संख्या 16 )

1, पहला वाक्य जो बाली ने बोला वो इस प्रकार था -- 

रघुनन्दन आप राजादशरथ के सुविख्यात पुत्र हैं , आपका दर्शन सबको प्रिय है ।

2 , मैं आपसे युद्ध करने नहीं आया था , मै तो दूसरे के साथ युद्ध में उलझा हुआ  था उस दशा में आपने मेरा वध करके कौन सा गुण  अर्जित कर लिया 

( यहां बाली राम से कोई बैर न होने पर भी रामने उसे मृत्यु दी इस पर शोक के साथ  अफसोस और आश्चर्य प्रकट कर  रहा है ये श्लोक इसलिए विशेष है चूंकि इसमें वह राम पर विश्वास जता रहा है )

श्लोक संख्या 17,18 में बाली ने  स्वयं राम से  प्रभावित होने की  बात स्वीकार की  है ,कि सबकी तरह वो भी राम से प्रभावित था , पर क्यों नीचे पढ़िए। 

बाली कहता है कि- इस भूतल  पर सब प्राणी आपके यश का वर्णन करते हुए कहते हैं कि - श्री राम चन्द्र जी कुलीन हैं सत्वगुण सम्पन्न,  तेजस्वी , उत्तम ब्रत का आचरण करने वाले , करुणा का अनुभव कराने वाले , प्रजा के हितैषी , दयालु , महान उत्साही , समयोचित कार्य एवं सदाचार के ज्ञाता और द्रढ़ प्रतिज्ञ हैं । 

अर्थात इस श्लोक में बाली ये मान रहा है कि वो  राम के  इन उपर्युक्त गुणों से अत्यधिक प्रभावित था ।

इसके बाद  अगले श्लोक में बाली ने  राम के वो गुण गिनाये  जो  बाली को  राम से निडर बनाते  है जिनकी वजह से वह राम के प्रति लापरवाहहो गया था (श्लोक संख्या 19 ) जो इसप्रकार हैं,  इंद्रिय निग्रह,  मन का संयम,  धर्म,  धैर्य, सत्य,  पराक्रम और अपराधियों को दण्ड देना ये राजा के गुण  हैं ।

20वें श्लोक में कहता है कि मैं आपमें इन सभी सद्गुणों का विश्वास करके आपके उत्तम कुल को याद कर तारा के( बाली की पत्नी) मना करने पर भी सुग्रीव के साथ लड़ने चला आया ।   

अर्थात राम पर श्रृद्धा और अटूट विश्वास के चलते बाली ने रण भूमि में  राम की उपस्थित के बाबजूद भी इसपर विश्वास ही नहीं किया वे सुग्रीव का साथ इसकदर  निभायेंगे कि वे उसको मृत्युदंड ही दे देगें ।

श्लोक संख्या 21 में बाली कहता है।   कि - जबतक मैने आपको नहीं देखा था तब तक मेरे मन में यही विचार उठता था कि दूसरे के साथ  रोषपूर्वक जूझते हुए मुझको आप असावधान अवस्था में अपने बाणों से बेधना उचित नहीं समझेंगे 

बस यही वो बात है जो ये बताती है कि बाली को राम के गुणों के कारण राम पर इतना विश्वास हो गया कि उसने अपनी पत्नी की बात भी अनसुनी कर दी और राम के प्रति लापरवाह होकर वो सुग्रीव से युद्ध करने चला आया मतलब कि राम कहां और कैसे खड़े हैं इस बात को जानने समझने की कोशिश भी बाली ने नहीं की , सरल शब्दों में कहें तो  उसने वहां राम की उपस्थिति के बारे में जानते हुए भी,  उसने राम के क्रियाकलापों पर ध्यान ही नहीं दिया । 

इसलिए जब राम ने बाली को बाण मारा तो वो हतप्रभ रह गया चूंकि उसे राम से ऐसी उम्मीद ही नहीं थी । इधर राम को भी ये अच्छे से पता था कि बाली भी उनके और सुग्रीव की मैत्री के बारे में जानता है,  कारण ? बाली के वे गुप्तचर जो सुग्रीव के हर क्रियाकलाप पर कड़ी नज़र रखते थे और हमेशा उसपर हमला करते रहते थे । दूसरे राम की ख्याति तो पूरे जंगल में आग की तरह तभी से फैली थी जब से  राम  ॠषि विश्वामित्र के साथ उनके यज्ञ की रक्षा के लिए गये थे ।

इसलिए बाली कह रहा है कि राम जब मैं पूरे मनोयोग ( कंसन्ट्रेशन) से दूसरे के साथ युद्ध में व्यस्त था तभी तुमने बीच में  मुझे मार दिया । अब बताइए ऐसे में राम को पेड़ के पीछे छुपकर बाण मारने की आवश्यकता ही कहां थी क्योंकि दोनों को एक दूसरे के बारे में सब पता था , राम सुग्रीव के साथ इस समय मौजूद हैं ये बाली जानता था । पर वो, राम के प्रति आश्वस्त था, बस यही बात  बाली के लिए घातक सिद्ध हुई ,  राम ने तो बाली को  बाण मारा , पर ये कहना कि पेड़ के पीछे से छुपकर मारा सरासर गलत है अफवाह है , और बाली ने भी कभी ये नहीं कहा कि राम तुमने मुझे पेड़ का आड़ से छुपकर मारा है , नहीं कभी नहीं बोला । 

खैर श्लोक संख्या 22 में क्रोधित होते हुए कटाक्ष पूर्ण भाषा का उपयोग करता हुआ बाली आगे कहता है -       ( इससे पहले बता दूं 22-29तक के श्लोक आपको बता देंगे कि बाली राम पर धोखा देने , छल करने तथा छुपकर मारने की बात क्यों कर रहा है ? और उसकी इन बातों में क्या पेड़ का भी कोई रोल है ? ) 

परंतु आज मुझे मालूम हुआ कि आपकी बुद्धि मारी गई  है , आप धर्म ध्वजी हैं (धर्मी होने का पाखण्ड करना ), दिखावे के लिए धर्म का चोला पहने हुए  हैं वास्तव में अधर्मी हैं। आपका आचार विचार पापपूर्ण है ।आप घासफूस से ढके हुए कूप के समान धोखा देने वाले हैं । (22)

आपने साधुपुरुषों सा वेश धारण कर रखा है परंतु हैं पापी । राख से ढकी आग के समान आपका असली रूप साधुवेश के पीछे  छुप गया है । मैं नहीं जानता था कि आपने लोगों को छलने के लिए  ही धर्म की आड़ ली है ।( 23)

 तो अब आपको  साफ हो गया होगा कि बाली राम से किस धोखे से  छल से छुपकर मारने की बात कर रहा है ? चलो एक बार मैं फिर बता देतीं हूं ।

वो राम से साधुवेश के पीछे से छलने की बात  कर रहा है वो राम से धर्मी होने का नाटक करके लोगों को धोखे में रखने की बात कर रहा है वो राम को बता रहा है कि तुम्हारा असली वेश तो साधुवेश के पीछे छिपा है और तुमने  लोगों को छलने के लिए धर्म की आड़ ली है ।

तो भाई श्लोक संख्या 20-23 तक बाली ने राम के धोखे , छल और छिपने छिपाने की बात  की है ,और यही बात लोग समझ नहीं पाए कि राम ने बाली को किस तरह छुपकर मारा , सच्चाई तो ये है कि राम ने बाली को कैसे भी  छिपकर नहीं मारा बस ये बाली का क्रोध था राम पर इसलिए उसने राम पर धर्म ध्वजी और साधुवेश के पीछे छुपकर मारने जैसे लांछन लगाये , और हम लोगों ने राम के पेड़ के पीछे छिपे रहने को छुपकर बाण मारने से जोड़ दिया । आगे के श्लोकों में  वह खुद को निरपराध बताते हुए  है प्रश्न करता है  राम ने उसे क्यूं मारा ?

राम का उत्तर तो आप जानते ही हो कि 

अनुज वधू भगिनी सुत नारी ।              सुनु सठ कन्या सम ये चारी ।।         इन्हें कुदृष्टि बिलोकेहु जोई ।           ताहि बदे कछुआ पाप न होई ।

जो भाई की पत्नी , बहन और पुत्र वधू पर बुरी नज़र डाले उसे मारने में पाप नहीं लगता इनका सम्मान कन्याओं की तरह करना चाहिए। 

फिर 24 -54 तक के श्लोकों मे बाली खुद को  निर्दोष साबित करते हैं राम को राजनीति , धर्म और व्यवहारिकता का पाठ  पढ़ाता दिखता है । 

लेकिन श्लोक संख्या 47 में एकबार फिर बाली कहता है कि - 

राजकुमार! यदि आप युद्ध स्थल में मेरी दृष्टि के सामने आकर मेरे साथ युद्ध करते तो आज मेरे द्वारा मारे जाकर सूर्य पुत्र यम देवता के दर्शन कर रहे होते ।

फिर  श्लोक संख्या 48 में कहता है जैसे किसी सोये हुए पुरुष को सांप आकर डस ले और वो मर जाये उसीप्रकार रणभूमि में मुझ दुर्जय वीर को  आपने छुपे रह कर मारा है तथा ऐसा करके आप पाप के भागी हुए हैं 

उपरोक्त श्लोकों से तो शायद फिर लोगों को भ्रम हो सकता है कि देखो अब तो वो साफ साफ कह रहा है कि यदि तुम युद्ध स्थल में मेरी आंखों के सामने आकर मेरे साथ युद्ध करते तो मेरे हाथों मारे जाते 

लेकिन भाईसाहब यहां वो राम और अपने बीच युद्ध करने की बात कर रहा है , यानि राम और उसके बीच यदि युद्ध  होता तो वो राम को मार देता ,ये उसका अहंकार ये बोल रहा था क्योंकि राम सुग्रीव के लिए ही नहीं अपितु बाली को धर्म और मर्यादा भंग करने के अपराध में  भी मृत्युदंड देना चाहते थे । लेकिन बाली से युद्ध करना नहीं चाहते थे।

 राम बाली से युद्ध क्यों नहीं।             चाहते थे :-------                               1, सबसे पहला और मुख्य कारण तो ये ही था कि बाली एक पशु था और वो भी स्वतंत्र,  स्वच्छंद कामी ,अमर्यादित तथा आक्रांता और जो सुग्रीव के लिए  ही नहीं बल्कि समाज के लिए भी खतरा बन चुका था , जिसके कारण राम  उससे युद्ध  नहीं बल्कि उसको राजा होने के नाते मृत्युदंड देना चाहते थे 

2, युद्ध  हमेशा सजातीय या विजातीय के बीच होता है जैसे मनुष्य का मनुष्य से देव दानव ,देव मनुष्य अथवा दानव मनुष्य लेकिन मानव और पशु के बीच यदि कोई युद्ध जैसा होता है तो वो शिकार कहलाता है न कि युद्ध इसलिए राम ने बाली का शिकार किया । 

3, बाली राम का वैसे भी दोषी था क्योंकि राम अवतार से पूर्व ब्रह्मा जी ने समस्त देव, गंधर्व ,  विद्याधर, अप्सरा, नाग, सांप तथा अनेक प्रकार के पशु पक्षियों को आदेश दिया था कि वे सभी वानर रूप के महा बलशाली योद्धाओं को उत्पन्न करें जो राम वनवास के समय उनकी सेवा के लिए तत्पर होंगे। जिनमें बाली भी शामिल था ।

पर इन सब में से बाली ही एक ऐसा पैदा हुआ जो अपने उद्देश्य को ही भूल बैठा और अपने बल के मद में चूर  एक व्यभिचारी तथा आक्रांता बन बैठा ।

4, राम प्रारंभ से ही बाली को दंडित करना चाहते थे , स्वयं  युद्ध करके उसका सम्मान बढ़वाना नहीं चाहते थेऐसे अनेक कारण थे जिनका विवरण वाल्मीकीय रामायण के किष्किंधा कांड में मिलेगा । मैं तो केवल सार बता रही हूं । 

लेकिन इस सबके बाबजूद भी एक प्रश्न तो शेष रह ही गया कि राम पेड़ के पीछे छुपकर क्यूं खड़े थे ?

राम वृक्ष के पीछे छुपकर क्यूं खड़े थे क्या बाली को मिले                     वरदान के डर से ? :------

इसके दो कारण हैं जिनमें से पहला तो यही है किराम बाली का शिकार करना चाहते थे न कि युद्ध करना ।दूसरा कारण थोड़ा राजनैतिक है अर्थात बाली को आश्वस्त कर देना कि राम उन दोनों के युद्ध में तटस्थ हैं , और फिर चुपके से उसका शिकार कर देना 

राम ने ये स्वीकार भी किया है उन्होंने बाली को जाल में  फंसाया ( अर्थात मोहजाल)और फिर मारा इस संदर्भ में राम ने साफ साफ  कहा है कि लोग तो गढ्ढा खोदकर, जाल फैलाकर न जाने कितने प्रयोजन करते हैं शिकार करने के लिए  मैने तो केवल भ्रमित ही किया है । भ्रमित क्यों किया ? क्योंकि किसी भी पशु का शिकार करने की ये ही प्रमुख युक्ति है सो राम ने भी अपनाई,  इसीलिए राम ने केवल सुग्रीव को ही बाली से लड़ने भेजा बाकी सब लोग (जो राम के साथ  आये लोग) पेड़ की आड़ लेकर ही खड़े थे

बाली को ब्रह्मा से मिले वरदान की बात का सच क्या है ;------

पहली बात तो ये है कि ऐसा कहीं नहीं लिखा कि बाली को सामने वाले की शक्ति खींच लेने का वरदान  प्राप्त  था यदि ऐसा होता तो बाली को बाण लगने के बाद जो राम और लक्ष्मण बाली के पास गये तब राम , लक्ष्मण,  नील ,तार और हनुमान जी सहित सभी का अधा बल खिंचकर बाली में आ जाता और वो तुरंत स्वस्थ हो जाता । लेकिन ये हुआ  नहीं 

क्योंकि ऐसा कुछ था ही नहीं इसीलिए बाली मारा गया ।

केवल राधेश्याम रामायण में लिखी है बाली को मिले वरदान की बात;-----

सर्वप्रथम हम ये समझते हैं कि   राधेश्याम जी थे कौन ? राधेश्याम जी( 1890- 1963) कथावाचक थे , उन्होने  अपनी राधेश्याम रामायण की सहायकता से स्वतंत्रता सेनानियों का मनोबल बढ़ाया और उनमे जोश भरा ,अर्थात ये रामायण केवल स्वतंत्रता सैनानियों का मनोबल बढ़ाने के उद्देश्य से लिखी गई थी और उनका ये प्रयास ताबड़तोड़ हिट हुआ,  इसकी गायन शैली भी वीर रस से ओतप्रोत थी लेकिन इस राधेश्याम रामायण का कोई प्रामाणिक आधार नहीं है। 

उस समय जहां भी राधेश्याम रामायण का पाठ होता था लोग जोश से भर जाते थे । मैं यहां कुछ बालीवध की राधेश्याम रामायण की पंक्तियां लिख रही हूं जिनमें बाली को मिले वरदान की बात राम  बोल रहे हैं ।

प्रसंग है कि राम का बाण लगने पर बाली धराशाई हुआ  तब वो राम से प्रश्न करता है कि आपने मुझे छुपकर  क्यों मारा ? तब राम उसे उत्तर देते हैं पंक्तियां निम्नलिखित हैं ।


राधेश्याम रामायण में बाली वध की चौपाईयां ------

 तूने वर ऐसा मांगा था ।

प्रत्यक्ष न मारा जायेगा ।।

सम्मुख लड़ने वाले का बल ।

तुझमें खिंचकर आ जायेगा ।।

वरदान किसी का नष्ट करें ,

ऐसा न स्वभाव हमारा है ।

बस इन्ही विचारों से हमने ,

ये बाण आड़ से मारा है ।। 

अर्थात इन पंक्तियों में जब बाली राम के द्वारा मारे जाने पर आपत्ति उठाता है तब राम कहते हैं कि मैने सामने से तुझे इसलिए नहीं मारा क्योंकि तुझे जो वरदान मिला है न कि तुझमें सामने से मारने वाले का आधा बल खिंचकर आ जायेगा इसलिए मैने बाण तुझे आड़ से मारा है ।

परंतु ये मनगढ़ंत बात है इसमें कोई सच्चाई नहीं है क्योंकि वाल्मीकीय रामायण में ऐसा कुछ नहीं लिखा है । और सत्य तो ये है कि राधेश्याम जी ने स्वयं भी आड़ से बाण मारने की बात कही है किसकी आड़ ? नहीं लिखा , अर्थात उन्होंने भी भ्रम की आड़ की ही बात कही है बल खिंचकर आने की बात  केवल बाली को महाबलशाली दिखाने के लिए  लिख दिया ।

मेरे कहने का तात्पर्य ये है कि किसी भी रामायण में देख लो पेड़ के पीछे से छुपकर मारने की बात  नहीं मिलेगी , ये केवल कयास है क्योंकि राम पेड़ के पीछे छुपकर खड़े थे तो केवल मान लिया गया कि बाण  भी राम ने वहीं से मारा होगा । अर्थात ये केवल लोगों का अनुमान है क्योंकि राम पेड़ के पीछे छुपकर खड़े थे इसलिए बाली को मारा भी वहीं से सिर्फ एक कपोल कल्पना है  जैसा कि  मैने ऊपर बताया है कि किसी भी रामायण में पेड़ (शब्द) नहीं आया  है ।  अब रामचरितमानस में भी देख लेते हैं ।

राम चरितमानस में बालीवध की महत्वपूर्ण चौपाइयां :------

चौपाई 1 

पुनि नाना विधि भई लराई।                 बिटप ओट देखहिं रघुराई।।

तो यहां भी पेड़ के पीछे से राम दोनों भाइयों का युद्ध केवल देख रहे हैं ।

दोहा 2

बहु छलबल सुग्रीव कर,                          हिंय हारा भय मान ।                   मारा बालि राम तब ,                         हृदय माझ सर तान।।

अर्थात राम ने जब देखा कि सुग्रीव हर तरह के छल एवं बल का प्रयोग करके भी बाली को हराने में अक्षम है तब वह बाली से भयभीत दिखा ऐसे में राम ने सुग्रीव की दशा देख धनुष की प्रत्यंचा सीने तक खींच कर बाली को मारा ।

अब देखिए इसमें भी कहीं नहीं लिखा है कि ये बाण राम ने पेड़ के पीछे से मारा है । अब चौपाई नम्बर तीन है जिसमे लोग  फिर भ्रमित होते हैं ।

चौपाई नम्बर 3

धर्म हेतु अवतरेउ गोसाईं ।                   मारेउ मोहि ब्याध की नाई।।

अर्थात हे राम तुम्हारा अवतार तो धर्म की रक्षा के लिए हुआ  है फिर तुमने मुझे ब्याध ( बहेलिया) की तरह घात लगाकर क्यों मारा ?

अब इसको ऐसे समझिये कि राम चरित मानस वाल्मीकीय रामायण की टीका है इसलिए उसमें जो विस्तार से लिखा है वही बात तुलसीदास जी ने छोटे में       ( हिंट में) लिखी है , जैसे - वाल्मीकीय रामायण में बता दिया है कि बाली राम से कहता है कि आपने तो धर्म की रक्षा के लिए अवतार धारण किया है फिर आपने मुझे मारने का पाप कैसे किया ।

अब ये हुई एक बात दूसरी बात बाली ने जो कही वो ये थी कि अपने धर्म की आड़ लेकर, साधुवेश , साधुस्वभाव और करुणामयी कृपालुता के दिखावे के पीछे छुपकर मुझे मारा है , तो ये है इनके पीछे छुपना जो बाली क्रोध में बोल रहा था ।

तुलसीदास जी ने इन दोनों को मिलाकर यही बात संक्षेप में कह दी, चूंकि वाल्मीक रामायण में तो ये कारण पता चल जाता है कि बाली राम को किन बातों के तहत छुपकर मारने का इल्ज़ाम राम पर धर रहा है । पर राम चरितमानस में क्योंकि ये दृष्टांत संक्षेप में है इसलिए लोग राम को पेड़ के पीछे से छुपकर मारने वाला समझने लगे , और फिर ये विचार फैला  केवल राधेश्याम रामायण की पंक्तियों की वजह से है ।

फिर भी अभी भी कोई  संदेह हो तो मुझे कमेंट में पूछें ।

राधे राधे 

धन्यवाद 


















राम चरितमानस के अनुसार           बाली वध :------

तो राम चरितमानस में बाली वध की केवल दो चौपाई और एक दोहा ऐसा है जिन्होंने ने लोगों को थोड़ा नहीं बहुत ही कन्फ्यूज्ड कर रखा है वो कैसे मैं बताती हूं 

नोट;- पर मैं दोहे या चौपाई का अधिकतर वही हिस्सा बार बार लिखूंगी जिनकी वजह से हमें भ्रम होता है क्योंकि पूरी चौपाई लिख ने पर भी अर्थ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा , आवश्यकतानुसार एक या दो बार पूरी चौपाई लिख कर बता दूंगी । 

1 ,  चौपाई----

          पुनि नाना विधि भई लराई।                 बिटप ओट देखहिं रघुराई।।

अर्थात जब सुग्रीव को राम ने दूसरी बार पहचान चिन्ह देकर बाली से लड़ने भेजा तब भगवान राम उन दोनों का ये युद्ध पेड़ के पीछे से छिपकर देख रहे। थे ।


अब  अगर इस कथन की सत्यता बाली को मिले वरदान पर निर्भर है  कि युद्ध भूमि में बाली के सामने जो भी जायेगा उसका आधा बल खिंचकर बाली में चला जायेगा ,  लेकिन बाली को मिले इसप्रकार के वरदान के विषय में दुर्भाग्य से वाल्मीकीय रामायण  और रामचरितमानस कुछ भी नहीं कहती जबकि ये ही रामायण हैं जो प्रामाणिक हैं , 

देखिए वाल्मीकीय रामायण तो इसलिए प्रामाणिक है क्योंकि यह उसी काल खंड में लिखी गई है जबकि इसके लेखक वाल्मीक तथा इसके मुख्य पात्र राम दोनों ही एक साथ मौजूद थे ।

और ये ही नहीं राम की उनसे मुलाकात भी हुई,  यानि राम के जीवन में क्या और कैसे घटित हो रहा है ,उनका राम से पूछना स्वाभाविक है और राम का वाल्मीक जी को बताना भी चूंकि वाल्मीक जी उस समय रामायण लिख रहे थे तो राम से  मिलन तक की घटनायें तो सौ  प्रतिशत सही और सटीक  होंगी ।

और इसके बाद  की  घटनायें जब सीता जी वाल्मीक आश्रम में रहीं थीं तब वाल्मीक जी ने सीता जी से कन्फर्म की होंगीं ( ये सब मैं आजकल के लोगों की मानसिकता को ध्यान  में रखकर लिख रही हूं वर्ना तो महर्षि वाल्मीक स्वयं त्रिकाल दर्शी थे । 

 और यदि आपको पता हो तो आप मुझे ज़रुर बतायें । क्योंकि जो भी कोई इस विषय पर बात करता है तो वो बाली को मिले वरदान की चर्चा करने लगता है पर ये पूछने पर कि ये प्रसंग किस ग्रंथ में मिलेगा सुनते ही उसका जो पहला रिएक्शन है वो ये होता है कि - अरे इतनी सारी रामायणें हैं किसी न किसी में तो दिया ही होगा न

मतलब कि आपको नहीं पता कि ये प्रसंग किस रामायण में  लिखा है ? बस मैं यही बताना चाह रही हूं कि राम कथा से जुड़े जितने भी प्रचलित प्रसंग हैं हम उन सभी के बारे में जानते हैं वो चाहे राम जन्म हो , राम विवाह हो या राम का विश्वामित्र के साथ उनके यज्ञ की रक्षा करते हुए ताड़का सुबाहु को मारना या मारीच को सात योजन पार फेंक देना तथा ताड़का, सुबाहु और मारीच  कौन थे ? तथा इनका राम के हाथों मरना क्यों आवश्यक था इसीप्रकार विराध , खरदूषण, त्रिशिरा और कबंध की भी राम के हाथों मरने की कथायें हैं यहां तक कि रावण और उसके भाई बंधु तथा परिवार के हर सदस्य की कथा का उल्लेख वाल्मीकीय रामायण में मिलता है लेकिन बाली के  जन्म की ही कथा तो वा.रा में मिल ती है वो भी जैसे अन्य वानरों की उत्पत्ति हुई  वैसे ही बाली का जन्म भी राम सेवा के लिए  ही हुआ  था पर उसने मद मे आकर अपना मार्ग ही बदल लिया ,(खैर ये अलग टॉपिक है जिसके विषय में कभी और चर्चा करेंगे )या फिर उसके उत्पातों का विवरण वाल्मीकीय रामायण में मिलता है परन्तु बाली ने तप कब किया  ? किस उद्देश्य से किया ? और किस जगह किया  ? इन सब बातों का उत्तर न तो वाल्मीकीय रामायण में मिलता है और न ही रामचरित मानस में तो भई मिलता  कहां  है ? 

चलिये  तो अब ये भी मैं ही बता देती हूं कि ये लिखा कहां है ? 

तो ये सिर्फ और सिर्फ राधेश्याम रामायण में लिखा है , और वो भी केवल बाली वध के समय राम के संवादों में ही लिखा है ।

राधेश्याम रामायण में बाली वध की चौपाईयां ------

 तूने वर ऐसा मांगा था ।

प्रत्यक्ष न मारा जायेगा ।।

सम्मुख लड़ने वाले का बल ।

तुझमें खिंचकर आ जायेगा ।।

वरदान किसी का नष्ट करें ,

ऐसा न स्वभाव हमारा है ।

बस इन्ही विचारों से हमने ,

ये बाण आड़ से मारा है ।। 

         अर्थ  तो आप समझ ही गये होगे? चलो फिरभी संक्षिप्त में बता देती हूं , कि राम कह रहे हैं कि तुझे जो वरदान मिला है उसकी वजह से मैं तुझे सामने से नहीं मार सकता था इसलिए  तुझे आड़ से मारा है 

यानि इसमें भी बाली के वरदान की बात एक ज़िक्र के तौर पर ही है इस बात का कोई इतिहास नहीं बताया कि कब बाली को ऐसा वरदान मिला कब उसने तप करके ये वरदान पाया ।                 खैर कोई बात  नहीं मैं बताती हूं कि राधेश्याम जी को अचानक बाली को वरदान प्राप्त था जैसी बात सूझी कहां से ?                                                तो ये सूझी राम चरितमानस में लिखी चौपाई से , जिसमें लिखा है कि ---

'मारेहु मोहि ब्याध की नाई'          क्योंकि इसी चौपाई को ज़रिया बनाकर लोगों ने बाली को छिपकर मारने की कहानी गढ़ दी।

और लोगों ने मान भी ली क्योंकि ये बात आज या कल में नहीं फैलाई गई है इसका काल तो तब से है जब लोग पढ़े लिखे होते ही नहीं थे  तथा ग्रंथों को छूने की परमीशन सबको नहीं थी अर्थात कम पढ़ा लिखा पं या कथावाचक जो समझकर बोल दे लोग भी वही मान लेते थे पर इससे भी ज्यादा दुख की बात ये है कि अभी भी उसी लकीर के फकीर हुए बैठे हैं ,

अरे भाई अब तो ग्रंथों को हर कोई पढ़ सकता है तो क्यों नहीं खुद ही सही जानकारी ले लें ? पर नहीं अभी भी दूसरों द्वारा सुनाई कथा पर ही निर्भर हैं और अभी तक इसी भ्रम में जी रहे हैं कि राम ने बाली को पेड़ के पीछे से छिपकर मारा ।

देखिए किसी ने किसी को आड़ से या छिपकर मारा ये एक अलग बात  है , क्योंकि ये आड़ छद्म वेश भी बन सकता है , कपटी बातें भी हो सकतीं हैं तथा कपट पूर्ण आचरण  भी हो सकता है जिसकी आड़ से सामने वाले को विश्वासमें लेकर उसके साथकुछ भी किया जा सकता है यानि मारा भी जा सकता है , आज कल तो दोस्ती प्यार और लालच की आड़ में न जाने कितने अपराध किये जा रहे हैं । 

राम के लिए भी  यही कहा था बाली ने उसने राम से छल से मारने की बात कही है न कि पेड़ की आड़ से छुपकर मारने की बात  , 

देखिए तुलसीदास जी ने भी जो इस विषय की पहली चौपाई जो लिखी है वो है ये --       

पुनि नाना विधि भई लराई।                 बिटप ओट देखहिं रघुराई।।

अर्थात दोनों मे बार बार अनेक तरह से जो युद्ध हो रहा था जिसे राम पेड़ के पीछे से छुपकर देख रहे थे । 

छिपकर देखने और छिपकर मारने में ज़मीन आसमान का फर्क  होता है । तो फिर 'बिटप ओट देखहिं रघुराई' को बिटप ओट मारहिं रघुराई कैसे कर  दिया ?अब  इसके बाद सीधे जो  दोहा आता  है  जिसमें तुलसीदास जी ने बताया है कि राम  ने धनुष की प्रत्यंचा  को सीने तक खींचकर बाली को बाण मारा  👇👇👇                             " बहु छल बल सुग्रीव कर ,                    हिंय हारा भय मान  ।                        मारा बालि राम  तब ,                          हृदय मांझि सरतान ।।                     

अर्थात सुग्रीव  बाली को हराने के लिए हर प्रकार के छल और बल का स्तेमाल करके भी सुग्रीव जब बाली से हारने लगा तब वह अपने ही भाई से भयाक्रांत होकर राम को तलाशने लगा  (वाल्मीकीय रामायणानुसार) 

राम ने जब  सुग्रीव का मनोबल टूटते हुए  अत्यंत भयभीत देखा तब 

मारा बालि राम तब ,                         हृदय माझि सरतान ।।                       

अर्थात तब राम ने बाण की प्रत्यंचा को सीने तक खींचकर बाली पर प्रहार किया जो बाली के जीवन का अंत करने के लिए राम द्वारा छोड़ा हुआ पहला और अंतिम बाण था ।

क्या राम ने ये बाण बाली को छुपकर मारा :---------

ऋजी नहीं , बिल्कुल  नहीं ! 

अब देखिए सारे विवाद की जड़ राम का यही एक बाण है,  पर मेरे मतानुसार इसमें कोई विवाद होना ही नहीं   चाहिए , क्योंकि 

1,   वाल्मीकीय रामायण में बाली को छिपकर मारने की जैसी  कोई  बात नहीं कही गई है । 

2,  रामचरित मानस ने भी ऐसी कोई  बात  नहीं कही है ।

3, आप समझते हैं न कि राम का धनुष  क्या था ? मतलब कि राम का धनुष राम की ऊंचाई से एक या दो इंच ही छोटा होगा वर्ना वह लगभग राम के बराबर ही था । तो इतने बड़े शस्त्र को लेकर राम पेड़ के पीछे से निशाना कैसे साध सकते थे ? जबकि सुग्रीव और बाली मे मल्लयुद्ध चल रहा था और उनकी पोजीशन हर एक पल के सौ वें हिस्से में बदल रही थी ,                                   ऐसे में राम  छुपने के चक्कर में रहते तो बाली को कभी नहीं मार ही पाते । क्योंकि गलती होना तो अवश्यंभावी ही था ।

 4 ,वाल्मीकीय रामायण इस एक क्षण के खेल में बताती है कि बाण लगने के बाद  बाली राम से कहता है कि  "हे राम तुमने मुझे असावधानी की अवस्था में मारा है " ( अर्थात मैं दूसरे के साथ युद्ध में लीन था पर बीच  में आकर आपने मुझे मार  दिया ।)

 फिर अपनी इसी बात का स्पष्टीकरण  वो वाल्मीकीय रामायण के आगे के।    श्लोकों में करता है ।

 खैर अब आप ये बताइए कि  जिस समय राम ने बाली को मारा उस समय बाली अचंभित क्यों था ?  क्यों उसने राम  से कहा कि तुमने मुझे असावधान अवस्था में मारा ? क्यों उसने अपनी पत्नी द्वारा दी गई चेतावनी को अनसुना कर दिया ?  बाली राम के प्रति इतना  आश्वस्त क्यों था? 

बाली की पत्नी तारा ने बाली को राम सुग्रीव मैत्री की पूरी कथा सुना दी थी और ये भी स्पष्ट कर दिया था कि अब राम का वरद हस्त सुग्रीव पर है पर और उसने बाली को सुग्रीव से युद्ध करने के लिए रोका लेकिन इसके बाबजूद भी बाली सुग्रीव से युद्ध करने आया क्योंकि सुग्रीव को राम पर पूरा भरोसा था  कि राम उसका कोई भी अहित  नहीं   करेंगे ।

अब इतने सारे क्यों के बावजूद बाली राम की तरफ से बिल्कुल आश्वस्त।  क्यों  था। 

दरअसल बाली की सोच ये थी कि  हम दोनों भाइयों ( सुग्रीव और बाली ) की लड़ाई के  बीच राम नहीं पड़ेंगे क्योंकि ये हम दोनों का आपसी मामला है और राम का ऐसा स्वभाव ही नहीं है कि वे दो लोगों के झगड़े में अपनी तीसरी टांग  घुसायें  । 

ये मै नहीं वाल्मीकीय रामायण कह रही है । किषकिंधा काण्ड में लिखा है कि  (वाल्मीकीयरामायण रामायण , सर्ग  सत्रहवां,श्लोक संख्या -20 ) जब बाली राम के तीर से घायल पड़ा था   तब उसने राम  से कहा कि मैं आपमें हर प्रकार के सद्गुणों का विश्वास करके , आपके कुल को याद करके तारा के मना करने पर भी सुग्रीव के साथ लड़ने चला आया ।

  वो कारण जिनसे प्रभावित होबाली ने राम पर इतना विश्वास किया कि अपनी पत्नी  तारा की भी नहीं सुनी  :---------

वा. रा , कि.का. श्लोक संख्या 18 में बाली राम  से कहता है कि -- , जब इस भूतल पर सब प्राणी आपके यश का वर्णन करते हुये कहते हैं कि ,

 1, श्री राम चन्द्र कुलीन , सर्वगुण सम्पन्न,  तेजस्वी, उत्तम ब्रतों का आचरण करने वाले , प्रजा के हितैषी , दयालु , महान उत्साही , समयोचित कार्य एवं सदाचार के ज्ञाता और दृढ़प्रतिज्ञ हैं ।

राम सभी राजगुणों से युक्त हैं , श्लोक संख्या - 19 

इंद्रिय निग्रह,  मन का संयम,  क्षमा ,धर्म,  धैर्य,  सत्य,  पराक्रम तथा अपराधियों को दण्ड देना - राजा के गुण  होते हैं । 

तो बाली राम से कहता है कि मैं आपमें इन सभी सद्गुणों का विश्वास करके , आपके उत्तम कुल की याद करके तारा के मना करने पर भी सुग्रीव के साथ लड़ने आ गया । ( श्लोक- 20)

जबतक मैने आपको नहीं देखा था , तबतक मेरे मन में यही विचार उठता था  कि दूसरे के साथ रोषपूर्वक जूझते हुए मुझको आप असावधान की अवस्था में अपने बाण से बेधना उचित नहीं समझेंगे । (श्लोक संख्या -21)
































आप तो दशरथ पुत्र राम हैं मैं आपसे युद्ध  करने नहीं आया था मैं तो दूसरे के साथ युद्ध कर रहा था , 

जब तक मैने आपको नहीं देखा था तब तक मेरे मन में यही विचार उठता था कि  दूसरे के लिए जूझते हुए आप मुझे नहीं मारेंगे , आप मुझको असावधान अवस्था में अपने बाण  से बेधना उचित नहीं समझेंगे । (    

राम ने बाली को पेड़ के पीछे से छिपकर नहीं मारा वाल्मीकीय रामायण की श्लोक व्याख्या :----------- 














               























तुमने मुझे अपनी कृपालुता





















 


 





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